BY-डा. विरेंदर भाटिया
यूक्रेन-रूस युद्ध रुक नही रहा है। जैसे जैसे लड़ाई आगे बढ़ रही है, वैसे वैसे रूस घातक हथियारों का इस्तेमाल बढ़ाता जा रहा है। पिछले हफ्ते से लेकर अब तक रूस ने सुपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। कई घटनाक्रम युद्ध भड़काने का भी काम कर रहे हैं, क्योंकि अमेरिका ने कह दिया है कि रूस की तरफ से परमाणु हमले की धमकी खतरनाक है और ये युद्ध को और भड़काएगी। सबकी नजरें इस वक्त जो बाइडेन पर टिकी हैं कि कहीं जो बाइडेन का पोलैंड दौरा तीसरा विश्वयुद्ध न भड़का दे। जो बाइडेन नाटो और सहयोगियों के साथ बातचीत के लिए यूरोप यात्रा के साथ साथ पोलैंड की यात्रा भी कर रहे हैं। पोलैंड यूक्रेन संकट के बीच एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी रहा है। अब तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन पर कैमिकल अटैक तक की आशंका जताई है। आशंकाओं के बीच आगे क्या होगा, इसके बारे में कुछ पता नहीं, लेकिन यह जरूर पता है कि भारत समेत पूरी दुनिया पर इस लड़ाई का असर पड़ रहा है। सवाल है कि अगर लड़ाई लंबे समय तक जारी रहती है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था क्या मंदी में चली जाएगी? क्या रूस-यूक्रेन युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था का दिवाला निकल जाएगा?
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अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालेगा। उसने कहा कि केंद्रीय बैंकों के लिए मुद्रास्फीति एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में इंतजार कर रही है। अभी स्थितियां अनिश्चित दिख रही हैं। यह लड़ाई कब तक चलेगी, यह पता नहीं, लेकिन इसका गंभीर आर्थिक असर दिखना शुरू हो गया है। बीते दिनों फूड और एनर्जी की कीमतें बढ़ गई हैं। सप्लाई चेन डिस्टर्ब हो चुकी है। रूस-यूक्रेन युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है जिकी वजह से कई देशों के केंद्रीय बैंकों के सामने मुद्रास्फीति को कंट्रोल करने का बड़ा चैलेंज है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर देखने को मिला। कमोडिटी की कीमत आसमान पर पहुंच चुकी है। क्रूड की कीमत 8 साल के सबसे हाई लेवल पर पहुंच गई है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बदहाल होने के कगार पर पहुंच गई है। अगर क्रूड की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती हैं, तो इसका सीधा असर पेट्रोलियम पदार्थों पर पड़ता है और पेट्रोलियम का सीधा असर मुद्रास्फीति पर पड़ता है। इसीलिए जो अर्थव्यवस्थाएं कमजोर हैं उनका असर चीजों की कीमतों पर पड़ेगा ही। इसीलिए युद्ध में सीधा असर उन देशों पर पड़ रहा है, जिनकी इकोनॉमी कमजोर है। आईएमएफ ने टेंशन जताई है कि अगर ये लड़ाई जल्दी नहीं रुकी तो आर्थिक नतीजे बहुत खतरनाक होंगे। उसने कहा कि ‘दुनियाभर के लोगों को बढ़ती कीमतों ने झटका दिया है।
खासकर गरीब लोगों पर इसका ज्यादा असर पड़ा है क्योंकि उनके कुल खर्च में फ्यूल की ज्यादा हिस्सेदारी है।’ इसीलिए इसका सीधा असर दुनियाभर के फाइनेंशियल मार्केट पर पड़ेगा। जहां तक दुनिया के मंदी में चले जाने का सवाल है तो एक्सपर्ट्स मानते हैं कि फिलहाल इसकी आशंका कम है। इसकी वजह यह है कि रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों का सबसे ज्यादा असर रूस पर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि अमेरिका खुद ऑयल और गैस का बड़ा एक्सपोर्टर है। उधर, यूरोपीय देशों ने रूस से ऑयल और गैस का इंपोर्ट भी जारी रखा है। अमेरिका और यूरोपीय देश भले ही यूक्रेन में अपने सैनिक नहीं भेज रहे हों, लेकिन वे यूक्रेन को आर्थिक मदद देने से पीछे नहीं हटेंगे। इसलिए यूक्रेन को हुए नुकसान की भरपाई हो जाएगी।
रूस-यूक्रेन युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव दाल रही है जिसकी वजह से कमोडिटी की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं, इसका असर अलग-अलग देशों पर अलग तरह से पड़ रहा है। आम तौर पर मंदी से पहले कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आती है। इस बार ऐसी स्थिति नहीं है। ऐसा देखा गया है कि केंद्रीय बैंकों के बहुत सख्त नियमों की वजह से मंदी की स्थिति पैदा होती है। इस बार केंद्रीय बैंकों ने अब अपनी पॉलिसी में बदलाव करना शुरू किया है। अब भी इंडिया सहित कई देशों में इंट्रेस्ट रेट अपने निचले स्तर के करीब है। हां, सप्लाई को लेकर प्रॉब्लम है। विदेशी बाजारों में मंदी, स्थानीय आवक बढ़ने से बीते सप्ताह लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट ब्लैक सी के रास्ते ट्रांसपोर्टेशन बंद है। इससे दूसरे बंदरगाहों पर जाम की स्थिति पैदा हो गई है। अगर लड़ाई जल्द खत्म नहीं होती है तो यह प्रॉब्लम और बढ़ेगी।
इसलिए यह लड़ाई हमारी प्रॉब्लम बढ़ा सकती है, लेकिन दुनिया के मंदी में जाने का खतरा फिलहाल नहीं दिख रहा है। युद्ध का असर खाने के सामान की कीमतों पर भी पड़ सकता है। वो इसलिए क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों ही कृषि उत्पाद के मामले में आगे हैं। स्टेलेनबॉश यूनिवर्सिटी और जेपी मॉर्गन में कृषि अर्थशास्त्र में सीनियर रिसर्चर वेन्डिल शिलोबो के अनुसार दुनिया में गेहूं के उत्पादन का 14 फीसदी रूस और यूक्रेन में होता है और गेहूं के वैश्विक बाज़ार में 29 फीसदी हिस्सा इन दोनों देशों का है। ये दोनों मुल्क मक्का और सूरजमुखी के तेल के उत्पादन में भी आगे हैं। यहां से होने वाला निर्यात बाधित हुआ तो इसका असर मध्यपूर्व, अफ्रीका और तुर्की पर पड़ेगा। लेबनान, मिस्र और तुर्की गेहूं की अपनी ज़रूरत का बड़ा हिस्सा रूस या फिर यूक्रेन से खरीदते हैं। इनके अलावा सूडान, नाइज़ीरिया, तन्ज़ानिया, अल्ज़ीरिया, कीनिया और दक्षिण अफ्रीका भी अनाज की अपनी ज़रूरतों के लिए इन दोनों देशों पर निर्भर हैं।
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दुनिया की बड़ी खाद कंपनियों में से एक यारा के प्रमुख स्वेन टोरे होलसेथर कहते हैं, ‘मेरे लिए सवाल ये नहीं है कि क्या वैश्विक स्तर पर खाद्य संकट पैदा हो सकता है, मेरे लिए सवाल ये है कि ये संकट कितना बड़ा होगा?’ कच्चे तेल की कीमतों के कारण खाद की कीमतें पहले ही बढ़ गई हैं। खाद के मामले में भी रूस दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों में शुमार है। कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से केवल डीज़ल-पेट्रोल या गैस की कीमतें नहीं बढ़ती बल्कि ज़रूरत के हर सामान की क़ीमत इसके साथ बढ़ जाती है। उत्पादन के लिए और सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए ईंधन का इस्तेमाल होता है, ऐसे में तेल की कीमतों का सीधा नाता महंगाई से है। बार्कलेज़ बैंक के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे स्टैगफ्लेशन बढ़ने का ख़तरा है।
बार्कलेज़ पहले ही वैश्विक आर्थिक विकास के इस साल के अपने अनुमान में एक फीसदी की कटौती कर चुका है। स्टैगफ्लेशन वो स्थिति होती है जब महंगाई लगातार बढ़ती है और अर्थव्यवस्था में एक ठहराव-सा आ जाता है, यानी अर्थव्यवस्था का विकास धीमा रहता है और बेरोज़गारी बढ़ जाती है। आप कह सकते हैं कि जब एक ही वक्त में महंगाई बढ़ती है और जीडीपी कम होने लगती है तो उस स्थिति को स्टैगफ्लेशन कहते हैं। एक और बेहद महत्त्वपूर्ण फैक्टर है बाज़ार में तेल की क़ीमतें, जो युद्ध के कारण पहले ही बढ़ती जा रही हैं।
अमेरिकी एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार अमेरिका और सऊदी अरब के बाद दुनिया में कच्चे तेल के उत्पादन के मामले में रूस तीसरे नंबर पर है। साल 2020 में रूस ने प्रतिदिन 1.05 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन किया। उसने इसमें से 50 से 60 लाख बैरल तेल निर्यात किया जिसमें से आधा केवल यूरोप को निर्यात किया। रूस के तेल निर्यात को लेकर अमेरिका और यूरोप की संभावित रोक की आशंका के बीच सात मार्च को ब्रेंट ऑयल (नॉर्थ सी के इलाके से निकाले जाने वाले कच्चे तेल) की कीमतों में रिकॉर्ड बढ़त दर्ज की गई। बीते सप्ताह अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमतों में 21 फीसदी का उछाल देखा गया था, जिसके बाद ये और 18 फीसदी बढ़कर थोड़ा कम हुआ और 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया। कुल मिला कर युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है। रूस को यूक्रेन के साथ बातचीत के जरिए हल निकालना चाहिए।
This post was published on March 30, 2022 2:06 am