BY-रमेश ठाकुर
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा ने भले ही जलियांवाला बाग कांड को ब्रिटेन के इतिहास को शर्मसार करनेवाला काला धब्बा बताया हो, लेकिन पीड़ित परिवारों के जहन में उसका दर्द आज भी पहले जैसा ही है। उस घटना से आक्रोशित होकर ही हिंदुस्तानियों ने आजादी का बिगुल बजाया था। घटना को याद करके अब भी रूहें कांप उठती हैं। जल्लाद रूपी अंग्रेज अधिकारी ”जनरल डायर” ने एक साथ हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। घटना में बच्चे, बूढ़े व औरतें सभी शामिल थे। बेकसूर लोग अपने प्राणों की भीख मांग रहे थे, लेकिन जनरल डायर को किसी पर रहम नहीं आया। अपनी सेना को सभी को मारने का आदेश देता रहा।
दरअसल कुछ घटनाएं ऐसी घटित होती हैं जो सदियों के लिए दर्द के निशान छोड़ जाती हैं। जलियांवाला कांड उन्हीं में से एक है। सनद रहे कि भारत की सबसे त्रासद नरसंहार घटना ”जलियांवाला बाग कांड” की इस माह की तेरह तारीख यानी ”बैसाखी” को सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। दर्दनाक घटना के कालखंडी इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1919 में बैसाखी के दिन यानि 13 अप्रैल को पंजाब के जलियांवाला बाग में समूचे भारत के अलग-अलग हिस्सों से लोग अमृतसर से होते हुए पहुंचे थे। बैसाखी पर्व को लेकर लोग जश्न में थे। देश उस समय गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। लोगों को जश्न मनाने और सभाएं करने की इजाजत नहीं हुआ करती थी। पर्व के दिनों में अंग्रेजी हुकूमत कर्फ्यू लगा देती थी, ताकि लोग एकत्र न हो सकें। अंग्रेजों को डर था कि अगर हिंदुस्तानी एक हो गए तो उनके लिए मुसीबत बन सकते हैं। बैसाखी के दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ।
अंग्रेजी सरकार ने अमृतसर में एक दिन पहले ही कर्फ्यू लगा दिया था। आदेश पारित हुआ कि बैसाखी के दिन लोग इकट्ठा न हों। अपने-अपने घरों में ही रहें। अंग्रेजों के आदेश का पालन करते हुए लोग बैसाखी की सुबह स्वर्ण मंदिर में दर्शन करने के बाद एक-एक करके शांतिपूर्वक सुरक्षित समझी जाने वाली जगह ”जलियांवाला बाग” में जाने लगे। लोगों का मकसद था वहां शांति के साथ बैसाखी का त्योहार मनाएंगे। लेकिन उनको क्या पता था कि वही जगह उनके लिए कुछ क्षणों बाद आखिरी जगह साबित होने वाली थी। देखते ही देखते जलियांवाला बाग में हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई।
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अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग ऐसा स्थान था जहां अक्सर लोग एकत्र होकर कुछ समय के लिए शांति प्राप्त करते थे। बाग अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के नजदीक ही है। विशेष मौकों पर लोग वहां जुटते थे। आपस में मिलते, बतियाते थे। बच्चे खेलते थे। कई बार बैठकें भी की जाती थी। तभी किसी भारतीय मुखबिर ने ब्रिगेडियर जनरल डायर को झूठी सूचना दे दी। बताया कि कुछ लोग जलियांवाला बाग में एकत्र हो रहे हैं और अंग्रेजों के खिलाफ कोई योजना बना रहे हैं। गुस्साया जनरल डायर जलियांवाला बाग की तरफ पुलिस को साथ लेकर कूच कर गया।
जलियांवाला बाग के गेट का वह संकरा रास्ता सिपाहियों से भर चुका था। जनरल डायर ने बिना कुछ सोचे-समझे अपने सैनिकों को गोली दागने का आदेश देकर पलभर में ही हजारों जिंदगियों को खामोश कर दिया। अफरा-तफरी के माहौल में फायरिंग से बचने के लिए बच्चों और औरतों ने बाग में बने गहरे कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी। दीवारों पर चढ़कर बाग से बचकर निकलने की कोशिश करते लोगों पर भी जनरल डायर फायरिंग कराता रहा। महज आधे घंटे के अंदर ही पूरे बाग में हजारों लाशें बिछ गईं।
इस घटना से जनरल डायर भी घबरा गया था। कई दिनों तक पुलिस थाने से बाहर नहीं निकला था। गोलियों के निशान बाग की दीवारों पर आज तक मौजूद हैं। वे अंग्रेजों की क्रूरता की गवाही देते हैं। सरकारी दस्तावजों में मौत का आंकड़ा 380 बताया गया है लेकिन असल में हजारों लोग मारे गए थे। रूह कंपा देने वाले मंजरों को जिसने सहा होगा, उसका एहसास भी हम नहीं कर सकते। घटना में मारे गए लोगों के परिजन आज भी पंजाब व अन्य प्रातों में मौजूद हैं। घटना को लेकर उनकी जुबानी आज भी रोंगटे खड़े करती है। जलियांवाला बाग कांड की निंदा पूरे संसार ने की थी। ब्रिटेन सरकार आज भी उसे अपनी सबसे बड़ी भूल मानती है। उनके नेताओं ने कई बार अनौपचारिक रूप से माफी भी मांगी है। ब्रिटेन का जब भी कोई बड़ा नेता भारत आता है तो जलियांवाला बाग जरूर जाता है।
14 अक्टूबर 1997 को ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ-2 भारत आईं तो उन्होंने भी जलियांवाला बाग पहुंचकर मरने वाले लोगों को श्रद्धांजलि दी। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरून भी 2013 में जब हिंदुस्तान आए तो जलियांवाला बाग गए। कैमरन ने जलियांवाला बाग कांड को शर्मनाक बताया था। अब ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने भी वही बात दोहराई है लेकिन जिनके अपने गए, उनका दर्द कोई नहीं समझ सकता। उस दर्द को केवल वह ही महसूस कर सकते थे जो उस घटना में हताहत हुए। जलियांवाला बाग कांड कभी न भुला देने वाली कहानी बन गई है। एक साथ हजारों लोगों की मार देने की कहानी सुनकर आज भी आंखें नम हो जाती हैं। घटना को सौ वर्ष बीत चुके हैं। लेकिन आज भी ऐसा लगता है कि मानो घटना एक-दो दिन पहले ही घटी हो। सौ क्या हजार सालों के बाद भी ऐसा ही प्रतीत होता रहेगा। जलियांवाला बाग कांड का घाव किसी मरहम और श्रद्धांजलि से नहीं भरा जा सकता। हजारों लोगों की शहादत को देश कभी धूमिल नहीं होने देगा। घटना ने पूरे देश के लोगों के भीतर अंग्रेजों से लड़ने का आक्रोश भरा था। अंग्रेज भी स्थिति को उस वक्त पूरी तरह से भांप गए थे। झुण्ड बनाकर ही बाहर निकलते थे। उनको पता था कि अकेले को आजादी के दीवाने नुकसान पहुंचाने में देर नहीं करेंगे।
(लेखक पत्रकार हैं।)
This post was published on April 14, 2022 5:46 am