चला जाए किसी का मान पर बची रहे नेता की शान

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BY-भूपेन्द्र गुप्ता-

मध्य प्रदेश की पुलिस माननीयों की शान को बचाने के लिए इतनी आगे निकल गई है कि उसे दर्जनभर कथित पत्रकारों के कपड़े उतरवाने में भी शर्म नहीं आई। यह तो और भी शर्मनाक है कि पत्रकारों के कपड़े उतरवाने के बाद फोटो बनवा कर पुलिस ही उसे कथित रूप से वायरल करवाए और फिर अपने बचाव में कहे कि उसने आरोपियों के कपड़े इसलिए उतरवाए ताकि वे आत्महत्या ना कर सकें।

क्या उन्हें इतना अपमानित किया गया था या उन पर इतने अत्याचार किये गये थे कि पुलिस को उनके आत्महत्या कर लेने की आशंका हो गई? आत्महत्या से बचाने का यह नया और महान उपाय निश्चित रूप से पुलिस ट्रेनिंग कॉलेजों के कोर्स का हिस्सा होना चाहिए और इस पर सत्तासीन माननीयों को विचार करना चाहिए। ऐसा होने से ही कोई पत्रकार किसी भी सच को उजागर करने का कम से कम मप्र में तो दुस्साहस नहीं कर सकेगा। हाँ, एक बात और है कि घर-घर इस बात की ट्रेनिंग भी दी जा सकती है कि अगर बच्चों को आत्मघात से और अवसाद से बचाना है तो उनके कपड़ों से उन्हें वंचित रखा जाए। यकीनन जेट युग में पाषाण युग की यह कवायद सत्ता के मदांधों की मानसिकता भी परिचायक है। इस प्रकरण की बदनामी से बचने के लिए दुष्प्रचार गैंग ने आरोपियों को बामिये ,आर्टिस्ट इत्यादि संबोधन देने शुरू कर दिए हैं जैसे कि आर्टिस्ट होना या किसी वैचारिक धारा में विश्वास करना एक अपराध हो।

क्या पुलिस को ऐसे राजनीतिक सोच का सौदागर बनना चाहिए? क्या कानून को किसी माननीय की कथित शान को बचाने के लिए प्रताड़ना पर उतारू होना चाहिए? यह कृत्य अभिव्यक्ति, सर्जना और जन अधिकार पर एक संगठित हमला है ।सवाल है कि क्या पुलिस ने यह कृत्य करने के पहले कोई जांच की ? क्या उस वैज्ञानिक जांच में कोई तथ्य सामने आए या केवल एक विधायक को प्रभावित करने के लिए 10 कदम आगे जाकर मानवीय मूल्यों की हत्या कर प्रताड़ना पर उतारू हो गए।

इस्‍लामोफोबिया का प्रतिरोध: भारतीय परिदृश्‍य में

मुझे अच्छी तरह याद है एक स्वतंत्रता सेनानी ने ऐसी ही एक घटना पर मुझे एक सच्ची घटना सुनाई थी कि आजादी के आंदोलन के दौरान जब वह होशंगाबाद में पुलिस लॉकअप में था तब गांधी जी के समर्थन में 2 दिन बाद वहां सभा होने वाली थी। वहां एक अंग्रेज एसपी था। उसने पुलिस की थाने में परेड की और सिपाहियों से कहा कि परसों जब गांधी वाले रैली निकालेंगे तब तुम क्या करोगे तो हिंदुस्तानी सिपाहियों ने कहा कि साहब लट्ठ चहोर देब। दूसरे ने कहा खुपड़िया खोल देब। उनकी बात सुनकर अंग्रेज एसपी ने कहा- इडियट! ध्यान से सुनो, पहले तुम सड़क पर लाठी बजाओगे, लाठी का आवाज सुनकर बहुत से गांधी वाले भाग जाएंगे। जो बचेंगे उनके पिंडली पर केनिंग करना है उससे भी बहुत लोग भाग जाएंगे जो नहीं भागेंगे उनकी थाई(जांघ) पर कैनिंग करना है। उसके बाद भी अगर लोग बचते हैं तो हिप्स पर कैनिंग करना है। फिर भी लोग बचे रहे तो उन्हें हैंड कफ्स करना है हथकड़ी में। यह अंग्रेजों के काम करने का तरीका था वे अपने गुलामों पर भी हमला करने के लिए एक सिस्टम का अनुसरण करते थे। विडंबना देखिए आज हमारी पुलिस आजाद भारत की पुलिस है। देश के ही नागरिकों से जो व्यवहार कर रही है वह शर्मनाक है। यह भी स्वयं सिद्ध करना कि जब नफरत घृणा और विद्वेश के वातावरण को तरजीह दी जाती है तो धीरे धीरे बर्बरता हमारे जन आचरण का हिस्सा बन जाती है। क्या देश में पनप रहा घृणा का वातावरण मनुष्य को जंगली आचरण की ओर धकेल रहा है? मानवों को दानव बनाने में लगी इस फेक्टरी का तो अभी ट्राईल प्रोडक्शन ही चालू हुआ है। यह तो ट्रेलर है क्या फिल्म अभी बाकी है? 

This post was published on April 9, 2022 5:05 am