November 21, 2024
अविश्वास प्रस्ताव

इमरान की डोलती कुर्सी

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान विश्व चैंपियन क्रिकेटर रहे हैं। उन्होंने देश की क्रिकेट टीम को विश्व विजेता बनाया था, लेकिन अब वह लंबा अतीत हो चुका है। आज इमरान सियासत की कमज़ोर विकेट पर हैं, लिहाजा कभी भी आउट हो सकते हैं। इमरान प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दें या अविश्वास प्रस्ताव के जरिए उन्हें बाहर जाना पड़े अथवा कोई अन्य सियासी मजबूरी हो, इमरान की हुकूमत का जाना लगभग तय है। हम सांसदों के बदलते समीकरण और आंकड़ों को भी महत्त्व नहीं दे रहे हैं, क्योंकि पाकिस्तान में पालाबदल बेहद आसान है। ज्यादातर सियासतदान की कोई प्रतिबद्धता नहीं है, लिहाजा पाकिस्तान में जम्हूरियत सिर्फ नाम की है। अभी तक एक भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है। उसकी हुकूमत का तख्तापलट किया गया अथवा सेना के अघोषित आदेश पर उसे इस्तीफा देने को बाध्य किया गया। इमरान पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री हैं और उनकी विदाई भी बगावत तथा विपक्षी लामबंदी के साथ होती दिख रही है। पाकिस्तान के जो अंदरूनी और अंतरराष्ट्रीय हालात हैं, वे तब भी थे, जब 2018 के चुनाव में इमरान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी। जनादेश का बुनियादी रुझान पीटीआई के पक्ष में था। हालांकि पार्टी बहुमत के आंकड़े से कुछ पीछे रह गई थी। बेशक पाकिस्तान के आंतरिक, आर्थिक और विदेशी हालात बेहद खराब हैं। एक अमरीकी डॉलर पाकिस्तान के 177 रुपए के बराबर है। विशेषज्ञों का मानना है कि रुपए का यह अवमूल्यन 200 रुपए के पार जा सकता है।

‘कश्मीर फाइल्स’ व भारतीय सिनेमा

पाकिस्तान पर 21 ट्रिलियन रुपए का घरेलू और विदेशी कर्ज़ है। जनवरी 2022 तक कर्ज़ करीब 9.5 फीसदी बढ़ा है। जुलाई 2021 से पाकिस्तानी रुपया, डॉलर की तुलना में, करीब 12 फीसदी टूट चुका है। नतीजतन देश में महंगाई की दर 20 फीसदी से ज्यादा है। करीब 31 फीसदी नौजवान बेरोजगार हैं। दूध औसतन 200 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है। टमाटर 120-160 रुपए किलो बेचा जा रहा है। दूसरी सब्जियों की कीमतें भी आसमान छू रही हैं। देश के चालू खाते का घाटा जीडीपी का 5 फीसदी से अधिक है। अवाम में हाहाकार मचा है। इमरान ‘नए पाकिस्तान’ के सपने और आश्वासन के साथ हुकूमत में आए थे, लेकिन व्यवस्था में कुछ भी दुरुस्त नहीं कर सके। हालांकि आज जो पाकिस्तान सामने है, उसके लिए इमरान की हुकूमत कसूरवार नहीं है। आर्थिक विपन्नता उन्हें विरासत में मिली थी। इमरान ने पाकिस्तान के आका देश अमरीका से भी रिश्ते खराब किए। रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात थे, लेकिन इमरान रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात करने मॉस्को चले गए। चीन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को बार-बार बचाया है, लेकिन चीन एक स्वार्थी देश है। उसका हित पाकिस्तान में नहीं होगा, तो वह कभी भी उसकी मदद नहीं करेगा।

इमरान की हुकूमत के दौरान पाकिस्तान ने सऊदी अरब जैसा पुराना और भरोसेमंद दोस्त भी खोया है। भारत के साथ उसके कामकाजी रिश्ते भी नहीं हैं। देश में समीकरण ऐसे हुए कि सेना प्रमुख जनरल बाजवा और उनके जरिए पाकिस्तानी फौज इमरान से नाराज़ हो गई। पाकिस्तान में सेना अघोषित तौर पर सबसे बड़ी सियासी पार्टी है। उसके समर्थन के बिना कोई भी हुकूमत असंभव है। जनरल बाजवा और आईएसआई के डीजी प्रधानमंत्री इमरान से मिलने गए। जो भी बातचीत हुई, लेकिन इमरान को देश के नाम संबोधन टालना पड़ा। इमरान के खिलाफ विपक्ष ने फरवरी से ही लामबंदी शुरू कर दी थी, लेकिन अब तो पार्टी में ही बगावत जारी है। इमरान की पीटीआई का क्या अस्तित्व रहेगा, यह आकलन करना ही मुश्किल है। यानी इमरान अभी तक के सबसे गंभीर संकट में हैं, लेकिन उन्होंने प्रेस से बातचीत में दावा किया है कि उनकी कुर्सी बचने के 80 फीसदी चांस हैं। वह किस आधार पर यह दावा कर रहे हैं, वही जानें, हमारी निगाहें पाकिस्तान की नेशनल असेंबली की कार्यवाही पर टिकी हैं। पाकिस्तान में न केवल विपक्ष इमरान के खिलाफ हो गया है, बल्कि अब तो आवाम भी उनकी विफलताओं पर खुलकर बात करने लगी है।